BalodBaloda BazarBalrampurBastarBemetaraBijapurBilaspurCHHATTISGARHDantewadaDhamtariDurgGariabandGaurella-Pendra-MarwahiJanjgir-ChampaJashpurKabirdhamKankerKhairagarh-Chhuikhadan-GandaiKondagaonKORBAKoriyaMahasamundManendragarh-Chirmiri-BharatpurMohla-Manpur-ChowkiMungeliNarayanpurRaigarhRaipurRajnandgaonSaktiSarangarh-BilaigarhSukmaSurajpurSurguja

हर्रा लगे न फिटकरी,जंगल खोदो और सड़क बनाओ, अधिकारी हैं न……

0 आनियमित,अनियोजित विकास कार्यो में खप रही डीएमएफ से लेकर विभागीय राशि

कोरबा। हर्रा लगे न फिटकरी और रंग चोखा…। कुछ इसी तर्ज पर जंगल वाले वन विभाग में जंगल राज चल रहा है। वर्षो से जमे अधीनस्थ के मकड़जाल में नए-नए अधिकारी भी उलझ रहे हैं और गलत को देखकर भी सही ठहराने की कोशिश में जुटे हैं।
जिले के कोरबा वन मंडल के बालको वन क्षेत्र अंतर्गत दूधीटाँगर से फुटका पहाड़ के मध्य 14 किलोमीटर डब्ल्यूबीएम सड़क निर्माण के मामले में हुई शिकायत की फाइल जहां दबा कर रख दी गई है वहीं संबंधित भाजपा नेता सह ठेकेदार के साथ मिलीभगत कर रेंजर से लेकर एसडीओ और वन विभाग के अधिकारी खेल कर रहे हैं। तत्कालीन डीएफओ प्रियंका पांडेय ने इस ओर से नजरें घुमाये रखी तो वर्तमान नव पदस्थ डीएफओ को अधीनस्थ अधिकारी और कर्मी गुमराह करने से बाज नहीं आ रहे। जंगल से ही मिट्टी, मुरूम और छोटे-बड़े पत्थर खोद कर सड़क के निर्माण में बेधड़क लगाया जा रहा है। दिखावे के लिए कुछ स्थानों पर गिट्टियों के ढेर जरूर खड़े किए गए हैं लेकिन काम की हकीकत लीपापोती में दिखती है।
0 नेचर ट्रेकिंग की आड़ में 6 करोड़ का खेल
इस मामले में अहम यह है कि उक्त मार्ग में डब्ल्यूबीएम सड़क निर्माण की जरूरत नहीं थी। पूर्व में बालको प्रबंधन ने फुटका पहाड़ से निकलने वाली बॉक्साइट के परिवहन के लिए सड़क का निर्माण कराया था। इस सड़क को उखड़वाकर वन विभाग द्वारा डीएमएफ के लगभग 6 करोड़ रुपये खर्च करने का रास्ता बनाया गया और अनुपयोगी सड़क में फूंके गए। सड़क को लेकर कोई सवाल ना उठे इसलिए यहां पर ट्रैकिंग का बोर्ड लगा दिया गया है। नए रेंजर को कोई मतलब नहीं और तत्कालीन रेंजर का तर्क था कि सड़क बन जाने से वनवासियों, पहाड़ी कोरवा को आवागमन में सुविधा होगी जबकि इस मार्ग में दूर-दूर तक कोई घर, गांव नजर नहीं आते। अब इस बीहड़ जंगल मे कौन सा ट्रेकिंग वन विभाग वाले कराएंगे ये तो वे ही जानें लेकिन इनकी सांठगांठ से जंगल से ही मिट्टी,गिट्टी,मुरुम खोदकर, परिवहन भाड़ा,रॉयल्टी का राजस्व बचाकर, बिना डोजर चलवाये डब्ल्यू बी एम की अमानक सड़क तैयार कर दो गई है। अभी काम शेष है पर भुगतान अशेष है। कुल मिलाकर सरकार का पैसा पानी की तरह बहाना है और निर्माण के नाम पर ठेकेदार से लेकर अधिकारियों की जेब गर्म करना मकसद है तब कलम कौन चलाएगा…! कोरबा रेंज से लेकर कटघोरा वन मंडल में भी ऐसा ही आलम है जिसे वर्षों से जमे रेंजर अंजाम दे रहे हैं।
0 अधूरी सड़क बनाकर छोड़ा
आबादी विहीन इलाके में नेचुरल ट्रैक के नाम डीएमएफ के करोड़ों रुपए फूंक कर आधी-अधूरी सड़क ही बनाई गई। वन विभाग के प्रस्ताव को जिला खनिज न्यास ने स्वीकार कर निर्माण एजेंसी वनमंडल कोरबा को बनाया। आपसी रजामंदी से इस काम के कई टुकड़े किये गए। दो- दो किलोमीटर तक मरुम सड़क बनाने के नाम पर खनिज न्यास मद से 48 लाख- 48 लाख रुपए तक स्वीकृत कराए गए। खजिन न्यास मद से लगभग 6 करोड़ रुपए निकाला गया । मुरुम को सड़क पर डालकर छोड़ दिया गया। इस पर रोलर नहीं चलाया गया। रास्ते में पड़ने वाले पुल पुलिया का निर्माण गुणवत्ताहीन किया गया। निर्माण कार्य की गुणवत्ता इतनी खराब है कि अभी से ही पुल पुलिया के लिए इस्तेमाल की गई गिट्टी और सीमेंट निकलने लगी है। इस कार्य के लिए वन विभाग ने घने वन क्षेत्र में ही जेसीबी चला दिया।
0 ग्रामीणों को नहीं मिला रोजगार
फुटका पहाड़ से बेला तक की सड़क ग्राम पंचायत बेला का हिस्सा है। इस कार्य का 60 फीसदी काम मशीन से किया जाना था, जबकि 40 फीसदी काम के लिए मजदूर लगाए जाने थे। मजदूरों से सड़क पर मुरुम को बिछवाया जाना था लेकिन वन विभाग ने पूरा काम मशीन से करा दिया और किसी भी ग्रामीण को रोजगार नहीं मिला।

0 जरूरी कार्यो के लिए फण्ड का रोना,उधर बेवजह खर्च
जिले में अनेक जरूरी कार्यों के लिए विभागीय अधिकारी फण्ड नहीं होने का रोना रोते हैं और अनेक जरूरी विकास कार्य ठप्प हैं। जरूरी कार्यों को छोड़कर बिना कोई ठोस कार्ययोजना/क्रियान्वयन की रूपरेखा बनाये बगैर ही डीएमएफ के करोड़ों रुपये खर्च किये जा रहे हैं। सिर्फ इसलिए कि चहेते ठेकेदारों को काम देना है,इसका कमीशन लेना है। इसके बाद गुणवत्ता/उपयोगिता से कोई मतलब नहीं। जिले में बदहाल अनेक सरकारी स्कूल,सैकड़ों आंगनबाड़ी केंद्र,पुलिस कर्मियों की जर्जर आवासीय कालोनी सिटी कोतवाली, विभागों के सरकारी आवास,खदान प्रभावित भूविस्थापितों के लिए मद से होने वाले कार्य से लेकर जिले के विकास में डीएमएफ की राशि का सदुपयोग हो सकता है लेकिन इनके लिए सालों-साल से स्वीकृति का इंतजार ही हो रहा है। डीएमएफ के साथ-साथ विभागीय राशि की बंदरबांट कोरबा जिले में जमकर हो रही है और खर्च की अपेक्षा काम/विकास लोगों को नजर नहीं आ रहा।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

https://shikharkeshri.com/wp-content/uploads/2024/10/Screenshot_2024-01-11-15-10-14-966-edit_com.miui_.gallery.jpg

Please consider supporting us by disabling your ad blocker