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वो दौर,जब “रामभक्ति” था”अपराध”….जेल से मिलता था प्रमाण पत्र

नई दिल्ली/कोरबा। आज जब न सिर्फ भारत बल्कि पूरे विश्व भर में अयोध्या में रामलाल की मूर्ति की भव्य मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा की तैयारी की चर्चा जोर- शोर पर है, अयोध्या को दुल्हन की तरह सजाया जा रहा है और देश ही नहीं बल्कि विदेश से भी भक्तों और मेहमानों को आने हेतु आमंत्रण का सिलसिला चल रहा है तब 1990 के उस दौर की भी याद सहज ही आ जाती है जब भगवान राम के लिए संघर्ष करने वालों को रामभक्ति के लिए अपराधी घोषित किया गया।
नब्बे का दशक जब उत्तर प्रदेश के सीएम कहते थे कि अयोध्या में परिन्दा भी पर नहीं मार सकता,उस समय सरकार की नजर में रामभक्ति अपराध थी। बाबरी मस्जिद का ढांचा ढहाने के लिए कार सेवकों का काफिला उमड़ पड़ा था। इस समय गोलियां भी चली और गिरफ्तारियां भी हुई। इन्हें अलीगढ़ की जेल में रखा गया और जब जेल से रिहा किया गया तो कारसेवकों को प्रमाण पत्र दिया गया। जेल जाने वालों पर गांधी चौक कोतवाली पुलिस ने धारा 107/116 के तहत अपराध दर्ज किया और उनका अपराध रामभक्ति दर्शाया गया। जिला कारागार अलीगढ़ के प्रमाण पत्र में अपराध “रामभक्ति” स्पष्ट दर्ज है। आज जब चारों तरफ रामभक्ति की बयार है तो राजनीतिक मुद्दों में “रामभक्ति” तब गुनाह था,यह भी उभर कर सामने आया है। कारसेवकों के मुताबिक उस समय मंदिरों में जाना भी गुनाह हुआ करता था और निगरानी रखी जाती थी, मानो वे भारत में नहीं बल्कि किसी दूसरे देश में रह रहे हों और जहां भगवान की पूजा भी अपराध हो।

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