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KORBAमहापौर का जाति प्रमाण पत्र निलंबित,उपयोग पर प्रतिबन्ध

कोरबा। अपनी जाति को लेकर उठे विवाद में फंसे नगर निगम के महापौर राजकिशोर प्रसाद की जाति का प्रमाण निलम्बित(SUSPEND) कर दिया गया है। अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के होने का उनका दावा राज्य स्तर पर जांच के दायरे में है। फिलहाल राजकिशोर प्रसाद द्वारा किसी भी प्रकार के हित लाभ के लिए इस प्रमाण पत्र का उपयोग करने के लिए तत्काल प्रभाव से प्रतिबंधित किया गया है।
महापौर राजकिशोर प्रसाद की जाति को लेकर सवाल खड़ा करते हुए शिकायतकर्ता और वार्ड 13 की पार्षद सुश्री ऋतु चौरसिया ने वार्ड 14 के पार्षद और वर्तमान महापौर राजकिशोर प्रसाद पिता स्व. रामस्वरूप प्रसाद, निवासी सुमंगलम प्लाट नंबर 118, टी.पी. नगर की जाति को चैलेंज किया था। जांच रिपोर्ट में कहा गया है 6 मार्च को पारित आदेश में छत्तीसगढ़ अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग (सामाजिक प्रास्थिति प्रमाणीकरण का विनियमन) नियम, 2013 एवं यथा संशोधित अधिसूचना 24 सितंबर 2020 में निहित प्रावधान अनुसार राजकिशोर प्रसाद को अनुविभागीय अधिकारी राजस्व कोरबा के अनुमोदन पर तहसीलदार कोरबा द्वारा 5 दिसंबर 2019 को जारी अस्थायी सामाजिक प्रास्थिति प्रमाण-पत्र प्रथम दृष्टया संदेहास्पद एवं कपटपूर्वक प्राप्त करना पाया गया है। इसके कारण राजकिशोर प्रसाद के अस्थायी जाति प्रमाण पत्र को उनके अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए अंतिम जांच होने तक निलंबित किया गया है। इस प्रमाण पत्र का राजकिशोर प्रसाद द्वारा किसी भी प्रकार के हित लाभ के लिए उपयोग नहीं किया जा सकेगा। अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) कोरबा ने जिला दंडाधिकारी के निर्देश पर आदेश जारी किया है।
0 अंतिम कार्यवाही राज्य स्तर पर जिला स्तरीय प्रमाण पत्र सत्यापन समिति में शामिल सहायक आयुक्त आदिवासी विभाग श्रीकांत कसेर ने बताया कि राजकिशोर प्रसाद के विरुद्ध ऋतु चौरसिया ने शिकायत की थी। फिलहाल इसे सस्पेंड किया गया है।
0 दस्तावेज के आधार पर कार्यवाही बताया गया कि प्रस्तुत दस्तावेज के आधार पर फिलहाल कार्यवाही की गई है। ओबीसी प्रमाण पत्र के लिए 1983-84 के पूर्व के दस्तावेजों का होना अनिवार्य है।
0 प्रमाण पत्र निरस्त नहीं हुआ है : महापौर
महापौर राजकिशोर प्रसाद ने कहा है कि फिलहाल जिला स्तर की प्रमाण पत्र सत्यापन समिति द्वारा अस्थाई तौर पर प्रमाण पत्र को सिर्फ निलंबित किया गया है। अभी अंतिम जांच नहीं हुई है। इसका अंतिम निर्णय राज्य स्तर की छानबीन समिति द्वारा ही लिया जाता है। मामला हाईकोर्ट में भी विचाराधीन है।

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