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शपथ पत्र में शादी कर महिलाओं को झांसा देने का आरोप सिद्ध होने पर न्यायालय ने सुनाई उम्रकैद की सजा…

शपथ पत्र में शादी कर महिलाओं को झांसा देने का आरोप सिद्ध होने पर न्यायालय ने सुनाई उम्रकैद की सजा

  • मजबूत विवेचना में पूर्व पत्नियों का शपथ पत्र बना कड़ी सजा का आधार
    कोरबा । कोरबा जिले में विवाह का झांसा देकर दैहिक शोषण करने वाले कथित आरोपी को एक्ट्रोसिटी न्यायालय के विशेष न्यायाधीश (पीठासीन) जयदीप गर्ग ने सश्रम आजीवन कारावास की सजा से दंडित किया है।
    उस पर आरोप था की पीड़िता से नौकरी के संबंध में जान-पहचान बढ़ने पर कथित आरोपी द्वारा धीरे-धीरे अपनी बातों में उलझाकर यह कहा कि वह अविवाहित है और वह उससे अत्यधिक प्रेम करता है। उससे शादी करना चाहता है, कहकर उसे झांसा दे अपने साथ बिलासपुर ले गया और कुछ स्टाम्प पेपर में पारिवारिक समझौता पत्र बनवाकर उस पर उसका फोटो चस्पित करते हुए उससे शादी कर रहा है बोला। फिर उसे अपने साथ हाउसिंग बोर्ड कालोनी रामपुर में एक मकान में ले जाकर रखा तथा लगातार उसके साथ शारीरिक संबंध बनाते रहा। बाद में घर ले जाने की बात पर सामाजिक व जातिगत कारण बता खुद को विवाहित एवं बच्चे भी होना बताकर गाली-गलौच कर घर से पीड़िता को निकाल दिया। पीड़िता की रिपोर्ट पर पुलिस ने अपराध दर्ज कर विवेचना उपरांत प्रकरण न्यायालय में पेश किया।
  • पत्नी बताकर आपसी सहमति से बचने का प्रयास
    न्यायालय में कथित आरोपी ने पीड़िता को अपनी पत्नी बताकर आपसी सहमति का मामला बताने का प्रयास किया था किन्तु उसके द्वारा पूर्व में किये गए कृत्य और निष्पादित शपथ पत्र ही उसकी कठोर सजा का आधार बने। कथित आरोपी द्वारा पूर्व में भी 2 अन्य महिलाओं से विवाह कर छोड़ दिया गया था। पुलिस ने अपनी विवेचना के दौरान इन्हीं दोनों महिलाओं/पूर्व पत्नियों को साक्षी बनाया था। न्यायालय ने गंभीर अपराधिक कृत्य मानते हुए उसको आजीवन सश्रम कारावास और कुल 50 हजार रुपए अर्थदण्ड की सजा से दंडित किया है, जबकि दैहिक शोषण के सामान्य मामलों में 10 वर्ष तक की सजा होती आई है।
    दैहिक शोषण के ज्यादातर मामले जिसमें पीड़ित और आरोपी के मध्य विवाह संबंधी शपथ पत्र हो, उन मामलों में आपसी सहमति का मामला मानकर न्यायालय द्वारा आरोपी को दोषमुक्त कर दिया जाता है, पर इस मामले में यही शपथ पत्र दोषसिद्धि का आधार बना। प्रकरण में दोषसिद्धि के लिए न्यायालय में साक्ष्य के प्रस्तुतीकरण का तरीका एवं आरोपी का पूर्व इतिहास को साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत करना महत्वपूर्ण होता है। आरोपी के पूर्व इतिहास के आधार पर मामले को गंभीर बनाया जा सकता है। इस प्रकरण की पीड़िता बालिग और उच्च शिक्षित थी, इस आधार पर मामला आपसी सहमति का माना जा सकता था, किंतु आरोपी के पूर्व चरित्र के आधार पर न्यायालय ने आपसी सहमति को धोखे से ली गई सहमति माना और दंडित किया। इस मामले की विवेचना तत्कालीन सीएसईबी पुलिस चौकी प्रभारी एसआई कृष्णा साहू ने की थी। वे वर्तमान में बिलासपुर जिले के सरकंडा थाना में पदस्थ हैं।

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