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पर्यावरणीय मापदण्डों को ताक पर रख बालको की नियम विरूद्ध कार्यशैली से कोरबा अंचल में लगातार बढ़ रहे प्रदूषण के मुद्दे पर केन्द्र सरकार को पत्र लिखा पूर्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने…

पर्यावरणीय मापदण्डों को ताक पर रख बालको की नियम विरूद्ध कार्यशैली से कोरबा अंचल में लगातार बढ़ रहे प्रदूषण के मुद्दे पर केन्द्र सरकार को पत्र लिखा पूर्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने

कोरबा – पूर्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने भारत एल्यूमिनियम कम्पनी लिमिटेड, बालको द्वारा भारत सरकार द्वारा निर्धारित पर्यावरणीय मापदण्डों को ताक पर रखते हुए कोरबा अंचल में वायु प्रदूषण की विकराल होती स्थिति के लिए जिम्मेदार मानते हुए तत्काल कार्यवाहीं किए जाने हेतु केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव को पत्र लिखा है। पत्र में लिखा गया है कि कम्पनी का आधिपत्य ग्रहण करने के बाद बालको प्रबंधन ने संयंत्र विस्तार योजना के अन्तर्गत एल्यूमिनियम उत्पादन क्षमता में वृद्धि के साथ ही 540 और 1200 मेगावॉट के दो विद्युत संयंत्रों को स्थापित किया है। इन विद्युत संयंत्रों से प्रतिदिन लगभग 15 हजार टन राखड़ का उत्सर्जन होता है लेकिन उत्सर्जित फ्लाई ऐश (राखड़) के निपटान के लिए बालको प्रबंधन द्वारा कोई ठोस वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की गई है।
पत्र में आगे लिखा गया है कि बालको प्रबंधन द्वारा नियम विरूद्ध व जन विरोधी कार्यशैली अपनाते हुए स्थानीय हितों पर कुठाराघात कर दमनचक्र चलाया जाने लगा जिसका समय-समय पर स्थानीय लोगों ने जमकर विरोध भी किया। व्यापक पैमाने पर जन विरोध होने के बाद कुछ समय के लिए बालको प्रबंधन की कार्यशैली सामान्य बनी रहती है लेकिन पुनः वे लोग अपने पुराने ढर्रे पर आ जाते हैं। इसी तारतम्य में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने राख के शत-प्रतिशत यूटिलाइजेशन के लिए आवश्यक दिशा निर्देश जारी किए हैं लेकिन बालको प्रबंधन द्वारा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के दिशा निर्देशों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। यहां-वहां कहीं भी डम्प की जाने वाली राख के ढेर को देखकर लगता है कि बालको प्रबंधन द्वारा फ्लाई ऐश निपटान के लिए जारी दिशा निर्देशों की अवहेलना करने से सरकार द्वारा उन पर किसी भी तरह की कार्रवाई किये जाने का उन्हें कोई भय ही नहीं है।
पत्र की प्रतिलिपि मुख्यमंत्री सहित पर्यावरण मंत्री व कोरबा कलेक्टर को प्रेषित करते हुए लिखा गया है कि बालको संयंत्र से निस्तारित फ्लाई ऐश का परिवहन करने वाले वाहन निर्धारित स्थान तक न पहुंचकर जहां भी मौका मिला, खुले में फ्लाई ऐश की डम्पिंग कर रहे हैं। ऐसा होने से न केवल उस स्थान विशेष की मिट्टी खराब हो रही है वरन् हवा के झोंकों से खुले में पड़ी हुई राख के गुबार एक बड़े क्षेत्र में आसपास के निवासियों के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी कर रहे है और क्षेत्रवासियों के स्वास्थ्य पर गंभीर रूप से प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। कोरबा जिले में जहां भी नजर दौड़ाई जाए वहीं बिजली घरों से निकली हुई बड़ी मात्रा में राख के अंबार दिखाई पड़ जाएंगे। अन्य बिजली संयंत्रों द्वारा फ्लाई ऐश डाईक भी बनाए गए हैं लेकिन बालको प्रबंधन द्वारा पूर्व में बनवाए गए ऐश डाईक की भराव क्षमता पूरी हो जाने के बाद दूसरे विकल्प पर प्रबंधन द्वारा कोई विचार नहीं किया गया। परिणाम यह हो रहा है कि संयंत्र परिसर से सीधे तौर पर और फ्लाई ऐश (राखड) का निपटान करने के लिए खुले डम्फरों के जरिए राखड़ का परिवहन करवाया जाता है। राख डम्प करने के मामले में एनजीटी और भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय ने दिशा निर्देश जारी किया है लेकिन इसका पालन करना बालको प्रबंधन अपनी शान के खिलाफ समझता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी एक रिपोर्ट में बताया गया है कि अन्य शहरों की अपेक्षा कोरबा में हवा की गुणवत्ता दस गुना अधिक खराब है जिसकी वजह से इस क्षेत्र में अस्थमा, चर्मरोग, हृदयरोग व श्वसन संबंधी रोगियों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। इस बात का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है कि घने जंगलों के बीच स्थित होने के बावजूद भी कोरबा क्षेत्र में वायु प्रदूषण की बहुत अधिक गंभीर स्थिति बनी हुई है।
पत्र में आगे लिखा गया है कि छत्तीसगढ़ सरकार के कैबिनेट मंत्री की हैसियत से अन्य स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ वर्ष 2022 में उन्होंने स्वयं बालको प्रबंधन के एैश डाईक का मौके पर जाकर निरीक्षण किया था और बालको प्रबंधन के उच्चाधिकारियों को बुलवाकर इस तरह की मनमानी करने से मना करते हुए राखड़ का सही निपटान करने के लिए निर्देश दिया था। संबंधित उच्चाधिकारियों ने सम्पूर्ण व्यवस्था को एक महीने के भीतर सुव्यवस्थित करने का वायदा किया था और कहा था कि इस संबंध में अब आम नागरिकों को किसी प्रकार की शिकायत का अवसर नहीं मिलेगा।  आश्चर्य है कि आज भी बालको प्रबंधन का रवैया पूर्ववत् जारी है और आम नागरिक आज भी राखड़ की गंभीर समस्या से पीड़ित हैं। बालको प्रबंधन द्वारा निर्भीकतापूर्वक बिना किसी मापदण्ड का पालन करते हुए फ्लाई ऐश को कहीं भी डम्प करने का खेल आज भी जारी है जिससे पीड़ित स्थानीय जनता थक हार कर अपने को लाचार और बेबस महसूस कर रही है।
पत्र में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि बालको संयंत्र के मुख्य गेट से कोरबा शहर की ओर जाने वाले मार्ग पर निरंतर भारी वाहनों की आवाजाही से लगातार जाम की स्थिति निर्मित होने के साथ ही यात्रियों को सड़क पर राखड़ व धूल के गुबार का सामना तो करना ही पड़ता है, सड़क पर बने गड्ढों की वजह से अनेक दुर्घटनाएं घटित हो चुकी हैं और आए दिन दुर्घटना की आशंका बनी रहती है। इसी मार्ग पर सड़क किनारे बसे हुए लोगों का हाल ऐसा रहता है कि उनका घर से निकलना मुश्किल हो जाता है। वेदांत समूह द्वारा बालको संयंत्र का प्रबंधन सम्हालने के साथ ही स्थानीय निवासियों और जनप्रतिनिधियों को विश्वास में लेते हुए संयंत्र विस्तार की योजना बनाई और पर्यावरणीय जन सुनवाई के दौरान कम्पनी ने स्थानीय स्तर पर ज्यादा से ज्यादा स्थानीय बेरोजगार युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने का वायदा किया था। संयंत्र विस्तार कार्य संचालित करने के साथ ही कम्पनी अपने वायदे से मुकर गई और उनकी घोर उपेक्षा की जाने लगी। अन्य प्रांतों से कामगारों की भर्ती करके संयंत्र विस्तार कार्य व संयंत्र प्रचालन का कार्य करवाया जा रहा है जबकि स्थानीय स्तर पर ही हर विधा में दक्ष और योग्य युवाओं की घोर उपेक्षा हो रही है और उन्हें कोई अवसर प्रदान नहीं किया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि भारत बालको संयंत्र में भारत सरकार की 49 प्रतिशत हिस्सेदारी आज भी है, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि भारत सरकार के दिशा निर्देशों की कम्पनी कोई परवाह नहीं करती है या फिर कम्पनी को पूर्णतः स्वतंत्र निर्णय लेने के लिए भारत सरकार द्वारा विशेषाधिकार प्रदान कर दिया गया है।  आश्चर्य है कि किसी भी नियम विरूद्ध कार्य के मामले में भारत सरकार द्वारा कभी भी किसी प्रकार का कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया है जिसकी वजह से कम्पनी प्रबंधन का निरंकुश कार्यशैली को अपनाते हुए मनमाने तरीके से नियम विरूद्ध कार्य करने के लिए मनोबल बहुत ज्यादा बढा़ हुआ है और वे किसी भी नियम व कायदे कानून के बंधन से मुक्त निरंकुश कार्यशैली पर ज्यादा अपनाने पर ज्यादा यकीन करते हैं।  
पत्र में भारत सरकार द्वारा तत्काल प्रभाव से हस्तक्षेप किए जाने की आवश्यकता प्रतिपादित करते हुए लिखा गया है कि संयंत्र से निस्तारित फ्लाई ऐश (राखड) का उचित प्रबंधन करने के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल एवं पर्यावरण विभाग के दिशा निर्देशों का समुचित अनुपालन करते हुए राखड़ निपटान के लिए ठोस उपाय करने हेतु भारत सरकार द्वारा कड़े निर्देश जारी किए जाएं। पूर्व में किए गए वायदे के अनुरूप स्थानीय हितों को ध्यान में रखकर ज्यादा से ज्यादा स्थानीय बेरोजगार युवाओं को रोजगार उपलब्ध करवाने के लिए भारत सरकार द्वारा कम्पनी प्रबंधन को आवश्यक दिशा निर्देश जारी किया जाए। उपर्युक्त तथ्यों की जांच करवाने व सच्चाई जानने के लिए भारत सरकार यदि चाहे तो उनके द्वारा एक केन्द्रीय डेलीगेशन का गठन कर उपर्युक्त तथ्यों के संबंध में पड़ताल करवाई जा सकती है।

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